नहीं रहे लांस नायक हनुमनथप्पा, सियाचिन में एवलांच के 6 दिन बाद बचाए गए थे





मद्रास रेजिमेंट के लांस नायक हनुमनथप्पा 6 दिन तक 35 फीट बर्फ के बीचे दबे रहे थे।



 सियाचिन में एवलांच के छह दिन बाद बचाए गए लांस नायक हनुमनथप्पा नहीं रहे। तीन दिन तक उनका दिल्ली के आर्मी रेफरल हाॅस्पिटल में ट्रीटमेंट चला। वे कोमा में चले गए थे। ब्लड क्लॉटिंग हो रही थी। मल्टी ऑर्गन फेल्योर के बाद उन्हें गुरुवार दोपहर हार्ट अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका।
- लांस नायक के निधन से कुछ देर पहले दिल्ली के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने मेडिकल बुलेटिन जारी कर कहा था कि उनकी हालत बहुत क्रिटिकल है।
- वो डीप कोमा में चले गए हैं। लो ब्लड प्रेशर की भी समस्या थी।
- डॉक्टरों के मुताबिक, जवान को निमोनिया था। उनकी किडनी और लिवर ने काम करना बंद कर दिया था। 
- उनके इलाज के लिए न्यूरोलॉजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और सर्जन की एक टीम लगी हुई थी। लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
रेस्क्यू ऑपरेशन का फर्जी वीडियो हुआ वायरल
- सोशल मीडिया पर सियाचिन रेस्क्यू ऑपरेशन का एक फर्जी वीडियो वायरल हुआ है। 
- आर्मी ने अपने फेसबुक पेज पर भी यही बात कही है।
- इस वीडियो में एक जवान को बर्फ से बाहर निकाला जा रहा है। 
- दावा किया गया था कि ये लांस नायक हनुमनथप्पा हैं। लेकिन आर्मी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में वीडियो को पुराना बताया है।
125 घंटे 35 फीट बर्फ के नीचे दबे रहे लांस नायक
- कई घंटों तक 35 फीट बर्फ हटाने के बाद हनुमनथप्पा तक रेस्क्यू टीम पहुंची।
- 33 साल के हनुमनथप्पा 125 घंटे से वहां थे। बाद में उनकी बॉडी में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रही थी।
- वे बेहोशी की हालत में मिले। उनकी पल्स नहीं मिल रही थी।
- उनके शरीर का पानी सूख चुका था। डिहाइड्रेशन के अलावा ठंड से हाइपोथर्मिया हो गया था।
- जम्मू-कश्मीर से दिल्ली लाए जाने के बाद उन्हें आर्मी रेफरल हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया।
- उनका हालचाल जानने के लिए मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी भी पहुंचे।
कब आया था एवलांच?
- 3 फरवरी को सियाचिन आर्मी कैम्प के पास सुबह साढ़े आठ बजे के करीब एवलांच आया था। 
- अपने बेस कैम्प से पैट्रोलिंग के लिए निकले एक जेसीओ समेत 10 जवानों का ग्रुप बर्फ के नीचे दब गया था।
- दरअसल, ग्लेशियर से 800 x 400 फीट का एक हिस्सा दरक जाने से एवलांच आया था।
- यह हिस्सा ढह जाने के बाद बर्फ के बड़े बोल्डर्स बड़े इलाके में फैल गए।
- इनमें से कई बोल्डर्स तो एक बड़े कमरे जितने थे।
- इसी के बाद शुरू हुआ दुनिया के सबसे ऊंचे बैटल फील्ड सियाचिन ग्लेशियर में 19500 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन।
आर्मी ने कैसे चलाया रेस्क्यू ऑपरेशन?
- आर्मी की 19वीं मद्रास रेजिमेंट के 150 जवानों और लद्दाख स्काउट्स और सियाचिन बैटल स्कूल के जवानों को 19600 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए तैनात किया गया।
- इनके साथ दो स्निफर डॉग्स ‘डॉट’ और ‘मिशा’ भी थे।
- आर्मी के सामने चैलेंज यह था कि उसे 800 x 1000 मीटर के इलाके में इंच-दर-इंच सर्च करना था।
- यहां 35 फीट तक ब्लू आइस जम चुकी थी। यह क्रॉन्क्रीट से भी ज्यादा सख्त होती है।
- सियाचिन के बेहद मुश्किल मौसम को झेलने के लिए ट्रेन्ड जवानों ने चौबीसों घंटे सर्च जारी रखी।
- दिन में टेम्परेचर माइनस 30 डिग्री और रात में माइनस 55 डिग्री चला जाता था। 
- इसके बावजूद जवान और दोनों खोजी डॉग डॉट और मिशा ऑपरेशन में लगे रहे।













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